वो रेल का जनरल डिब्बा
भीड़ बड़ी ज़ोर की लगी है
लोगो में चढ़ने की जैसे
होढ़ सी मची है।
मेरा आधा भारत
आज मुझे साफ़ दिख रहा है
आधी से ज़्यादा भीड़
जनरल डिब्बे में चढ़ी है।
कपड़े मटमैले और
लोग थोड़े सांवले हैं
महिलाओ की गोद में
बच्चे और पुरुषों के
हाथो में दो-तीन थैले हैं।
मुझे अब नफ़रत है इनसे
इनमें अशिक्षा, गरीबी,
भुखमरी, बेबसी, लाचारी
और फैलती बीमारी
दिखती है।
ताज्जुब होता है मुझे
न जाने क्यो
भारत के गरीब सिर्फ़
दीनदयालु कोच में ही
चढ़ते है।
फिर भी
हम न जाने कैसे
हमारी अर्थव्यवस्था
को लेकर सबसे आगे खड़े है?
शायद ये खेल गहरा है
आज चौथा स्तम्भ भी
इनके लिए बहरा है।
शायद ये गैर हैं
इसलिए ही तो
इनमें बेज़ुबाँ का पहरा है
वो रेल का जनरल डिब्बा…!