1

सृष्टि की अतल आँखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आयी है देवी
रंग और ध्वनि का निरंजन नाद बनकर
लेकिन अभी टूटी नहीं है धरती की नींद
इसलिए जागेगी देवी अहोरात्र

2

पूरब में शुरू होते ही
दिन का अनुष्ठान
जाग उठी हैं सैकड़ों देवियाँ
एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
थोड़ी देर में जागेगा घर
जागेंगी आवाज़ें
जागेगी भूख
इसलिए हवा में घोलकर धूम्र गंध
झोंक दिया है शक्ति ने
अपना एक अंश
चूल्हे में…

3

हवा के षड्ज और पञ्चम के बीच
समय के रिक्त घट में
भरने आस्था का जल
काल पुरुष के कंधों पर सवार हो
एक देवी निकली है अभी-अभी
सोनगाछी की गलियों से
जल-भरे नेत्र देखते हैं
देवी को जाते हुए
पृथ्वी के एक सिरे से, दूसरे सिरे की ओर
अवसन्न हैं हुगली के मंत्रपूरित रास्ते,
अब शायद जल ही समझेगा
जल का भार!

4

चैतिया दोपहर की तीखी धूप में
जमुना के घाट पर
गूँजा है एक आर्तनाद अभी-अभी
आज फिर कोई
केशहीना देवी करेगी संहार
और धवल हो आए अपने श्वेत-वसन को भिगोती
डब-डब आँखों से
नाप लेगी
समय की वो तमाम चूलें
जिससे न पशुता छूटी है
और न देवत्व।

5

जो कल तक देवी थी,
आज धोकर अपना तीसरा नेत्र
नाप रही है काठमांडू के रास्ते
अपने उन्हीं पैरों से
जिनके लिए कल तक वर्जित था
पृथ्वी का स्पर्श…
धर्म कहता है
क्योंकि अब वह कुमारी नहीं रही
इसलिए अब देवी भी नहीं रही
लेकिन यह बात धर्म नहीं
सिर्फ़ एक देवी ही समझ सकती है कि
जैसे कठिन है मनुष्य होकर देवत्व की परिधि में जीना
वैसे ही सरल नहीं देवत्व की परिधि को लाँघकर
मनुष्यत्व की ओर लौटना।

6

सबकी नज़रों से बचते-बचाते
वह ताम्बई हाथ लिए आ रहा है देवी फूल
अनभ्यस्त पैरों में रह-रह फँसता है साड़ी का छोर
पुजारी मुस्कुराता है,
मंदिर में आज देर तक बजेंगे नूपुर
लेकिन…
चमकते हैं दो अग्निस्फुलिंग उसकी आँखों में
और भग्न मंदिर की भित्तियों में गूँज उठती है एक ताली
और अब देवी प्रतीक्षारत है
दूसरी ताली के लिए…

7

गाँव के बाहर
दो बूढ़ी आँखें काली मिट्टी और घास-फूल से
गढ़ती रहती हैं देवी प्रतिमाएँ
रात-दिन
‘लेकिन इनकी देह की माप से बड़ी क्यों है
चेहरे की माप
और आँखें उससे भी बड़ी?’
एक बार पूछा, तो जवाब मिला—
‘ताकि महाचुप की इस लग्न में
कहीं तो शेष रह सके समय की परछाईं…’

8

आत्मा की चौखट पर
एक चिड़िया पंख समेटे बैठी है
चिड़िया की आँखों में आसमान है
चिड़िया उड़ सकती है
लेकिन चिड़िया देखती है
उस शरद को
जो आ बैठा है जीवन की डाल पर
माघ, चैत और असाढ़ के बाद
चिड़िया उड़ सकती है
लेकिन गाती है एक गीत
माघ, चैत और असाढ़ के बाद…

9

शरद के अंधेरों में तैरती है एक आहट
और स्मृतियों में उतरते आते हैं
कपूर गंध में डूबे पखेरू से दिन
गाँव के अंतिम छोर पर जलता दिया
लता-पत्रों के बीच झूलती फुंगनियों जैसे
ज्वाला जोगी के तेलपूरित केश
एक हाथ में जल, दूसरे में अग्नि लिए
अनंत जागरण रचती शुभ्र धूप-सी कुमारियाँ
और सदा निर्वाक रहने वाली गली से उठती देवी गीतों की थाप
नौ दिन जलते उस अखंड दिए की महक में
खो जाता है समय का बहना
बची रहती है
शरद के इन अंधेरों में तैरती एक आहट…

महादेवी वर्मा का लेख 'नारीत्व का अभिशाप'

किताब सुझाव:

उपमा 'ऋचा'
पिछले एक दशक से लेखन क्षेत्र में सक्रिय। वागर्थ, द वायर, फेमिना, कादंबिनी, अहा ज़िंदगी, सखी, इंडिया वाटर पोर्टल, साहित्यिकी आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविता, कहानी और आलेखों का प्रकाशन। पुस्तकें- इन्दिरा गांधी की जीवनी, ‘एक थी इंदिरा’ का लेखन. ‘भारत का इतिहास ‘ (मूल माइकल एडवर्ड/ हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया), ‘मत्वेया कोझेम्याकिन की ज़िंदगी’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ द लाइफ़ ऑफ़ मत्वेया कोझेम्याकिन) ‘स्वीकार’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ 'कन्फेशन') का अनुवाद. अन्ना बर्न्स की मैन बुकर प्राइज़ से सम्मानित कृति ‘मिल्कमैन’ के हिन्दी अनुवाद ‘ग्वाला’ में सह-अनुवादक. मैक्सिम गोर्की की संस्मरणात्मक रचना 'लिट्रेरी पोर्ट्रेट', जॉन विल्सन की कृति ‘इंडिया कॉकर्ड’, राबर्ट सर्विस की जीवनी ‘लेनिन’ और एफ़. एस. ग्राउज़ की एतिहासिक महत्व की किताब ‘मथुरा : ए डिस्ट्रिक्ट मेमायर’ का अनुवाद प्रकाशनाधीन. ‘अतएव’ नामक ब्लॉग एवं ‘अथ’ नामक यूट्यूब चैनल का संचालन... सम्प्रति- स्वतंत्र पत्रकार एवम् अनुवादक