रोटी माँग रहे लोगों से किसको ख़तरा होता है?
यार सुना है लाठी-चारज, हल्का-हल्का होता है।

सिर फोड़ें या टाँगें तोड़ें, ये क़ानून के रखवाले,
देख रहे हैं दर्द कहाँ पर, किसको कितना होता है।

बातों-बातों में हम लोगों को वो दबा कुछ देते हैं,
दिल्ली जाकर देख लो कोई, रोज़ तमाशा होता है।

हम समझे थे इस दुनिया में दौलत बहरी होती है,
हमको ये मालूम न था, क़ानून भी बहरा होता है।

कड़वे शब्दों की हथियारों से होती है मार बुरी,
सीधे दिल पर लग जाए तो ज़ख़्म भी गहरा होता है।

बल्ली सिंह चीमा की कविता 'ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के'

Book by Balli Singh Cheema:

बल्ली सिंह चीमा
(जन्म: 2 सितम्बर 1952) सुपरिचित जनवादी कवि