यह नदी
रोटी पकाती है
हमारे गाँव में।
हर सुबह
नागा किए बिन
सभी बर्तन माँजकर,
फिर हमें
नहला-धुलाकर
नैन ममता आँजकर
यह नदी
अंधन चढ़ाती है
हमारे गाँव में।
सूखती-सी
क्यारियों में
फूलगोभी बन हँसे,
गंध
धनिए में सहेजे,
मिर्च में ज्वाला कसे
यह कड़ाही
खुदबुदाती है
हमारे गाँव में।
यह नदी
रस की नदी है
हर छुअन है लसलसी,
ईख बनने
के लिए
बेचैन है लाठी सभी
गुनगुनाकर
गुड़ बनाती है
हमारे गाँव में।