ये राजा के महले क्या आपके हैं?
मैं घर से बेघर हो चुकी हूँ
मेरी आँखों की ज्योति छिन चुकी है
मुझे अंधी करके जो फेंक गए हैं
मेरे बागीचे से जो मेरा पौधा उखाड़ कर ले गए
मेरे पौधे को बौर भी पड़ा न था
मेरा साजन बहुत दूर भी तो न गया था
जिन्होंने काँपती टहनियाँ काट लीं
वे हँसुली वे दराँतियाँ क्या आपकी हैं?
ये राजा के महल क्या आपके हैं?
ये ऊँची दीवारें आकाश छूती हैं
महल माल व खजाने से मालामाल हैं
ये ईंटें इनका लाल रंग मन को भाता है
हमारे लहू की याद आती है
हमारे शरीर से पसीने की नदियाँ यहीं बही थीं
हमारे कंधों से शहतीर यहीं उतारे गये थे
धूप सहकर जिन्होंने ये दीवारें कायम कीं
क्या ये उनके महल आपके हैं?
ये राजा के महल क्या आपके हैं?
बहरे कानों में भी तोप कह गई
मैं आज भी बारह बजा चुकी हूँ
मेरे चाँद के चढ़ने की बेला है
पर गली में कोई आहट नहीं हुई
न मेरे पाँव ही दौड़कर प्रियतम को लेने गये
प्रियतम की रोज़ ही सुनाई पड़ने वाली आवाज़ सहन नहीं होती
आधे रास्ते ही से जो घेरकर ले गई
वे लोहे की कड़ियाँ क्या आपकी हैं?
ये राजा के महल क्या आपके हैं?
जिन्होंने हमारे खून के दिये जलाकर
अंधेरी रात में उजाला किया हुआ है
चाँद का गठबंधन थामे चाँदनी हँस रही है
हमें दूर से देखती है, और हमारी हँसी उड़ाती है
जब आसमान पर आतिशबाजियाँ
और गोले छोड़े जाते हैं
तब हमारे मन के तारे टूट जाते हैं
हमारे नन्हे बच्चे जिन्हें हैरान होकर देख रहे हैं
सौन्दर्य से भरपूर वे दीवालियाँ क्या आपकी हैं?
ये राजा के महल क्या आपके हैं?
जिन्हें खोद-खोदकर हमने बीज और खाद डाले
जिनके मिट्टी के घरौंदों का गँदला जल पिया
जिनको धूप में पानी देकर सीचा था
प्रियतम सूखा मुँह देखकर नाराज़ भी हुए थे
जिनके अंकुरित होने पर मन खिल उठा था
और बौर पड़ने पर हमारी दीवाली हुई थी
किसी की क्रोध से घूरती आँखों ने
हमारी आँखों से पूछा
ये सुन्दर क्यारियाँ क्या आपकी हैं?
ये राजा के महल क्या आपके हैं?
जिस पर किसी का अधिकार हो चुका है
छोटो अवस्था से ही जिसे कोई ले गया है
जिसे देखकर नयन हर्ष से खिल उठे हैं
जिसकी याद में दिन और रात में कोई अन्तर
नहीं दिखाई देता
जिसका नाम लेकर हर कोई छेड़ जाता है
जो कब की कौल-करार किये बैठी हैं
वे आत्माएँ क्या आपकी हैं?
ये राजा के महल क्या आपके हैं?