जो बंदूक लिये खड़ा है
वो भी नहीं है युद्ध का हिमायती
जो तलवार घरों में रखता है
वो भी जंग की उम्मीद नहीं करता।
जो बंदूक लिये खड़ा है
वो गोलियों की संख्या गिनता है रोज़
चाहता है गोलियाँ कभी कम न पड़ें
जो तलवार घरों में रखता है
वो तो जानते हुए भी
कि जंग खा रहा है दिनो-दिन उसका लौह
छूता तक नहीं उसकी मूठ तक।
बंदूक और तलवार की कोई चाहत नहीं होती
जिसको चाहत होती है
उसके पास बंदूक और तलवार नहीं होती
फिर भी हर युग ख़ून में सना रहा है
ये वक़्त हमें लड़ना सिखा रहा है
लड़ना बुरा तो है मगर
कुछ लड़ाइयाँ बेहद ज़रूरी होती हैं।
शान्ति-भंग के बाद ही जंग होती है
कितना अजीब है कि
जो भंग हुई, उसके लिए ही जंग होती है
मैं सरहद पे खड़ा सिपाही या
इतिहास में दर्ज़ किसी युद्ध में सैनिक होता
तो चाहता कि हर बार
बंदूक उठाने या तलवार चलाने से पहले ही
युद्धबंदी की घोषणा हो जाये
ताकि जो ज़रूरी हो ज़िन्दगी में
वो पहले कर लिया जाये
जैसे – आँखें मूँदने से पहले तुम्हें सोचना ज़रूरी होता है
और तुम्हें सोच कर सो जाना जंग जीतना ही तो है।