सुधीर आया है। उसके हाथ में रजनीगन्धा का एक फूल है- डण्ठल सहित। आँखों में चमक, होंठों पर मुस्कान। उसका दिल मानों पंख फैलाकर उड़ जाना चाहता है।
सुधीर आते ही बोला, “हासि, आज एक बहुत ही अच्छी खबर है। क्या दोगी बोलो। वर्ना नहीं बताऊँगा।”
हासि बोली, “बताईये न क्या है?”
“पहले बताओ, मुझे क्या दोगी?”
“मैं भला क्या दे सकती हूँ? अच्छा, आपके रुमाल में एक बहुत ही खूबसूरत एम्ब्रॉयडरी बना दूँगी। एक अनोखा पैटर्न मिला है।”
“नहीं, इसमें मैं राजी नहीं हूँ।”
“फिर क्या चाहिए आपको? चॉकलेट है, वह दे सकती हूँ।”
“मैं क्या छोटा बच्चा हूँ, जो चॉकलेट से मान जाऊँगा?”
हासि हँस पड़ी, बोली, “फिर मैं सुनना नहीं चाहती, जाईये। कह रही हूँ कि एम्ब्रॉयडरी बना दूँगी, चॉकलेट देने के लिए राजी हूँ, इसमें भी जब आप- ”
सुधीर बोला, “फिर चला मैं।”
हासि ने फिर पुकारा, “तो आप नहीं ही बताईयेगा?”
‘एक चीज पाने से बता सकता हूँ। वही… जो उस दिन माँगा था।- ” कहकर अर्थपूर्ण दृष्टि से हासि के चेहरे को देखकर वह हँसा।
हासि अचानक लजाकर फिर सम्भल गयी। बोली, “मैंने कहा था न आपको- वह नहीं हो सकता।”
लेकिन सुधीर के चेहरे की तरफ देखकर वह डर गयी। उसने सुना, सुधीर कह रहा था- “सोचा था, इस बात को छोटी-सी हँसी-मजाक के बीच कहूँगा। लेकिन नहीं सका। मुझे माफ करना। मैं सुनकर आया हूँ कि तुम्हारी शादी साँतरागाछी के उस लड़के के साथ तय हो गयी है।” कहकर सुधीर चला गया।
हासि ने पुकारा, “सुधीर’दा, जरा सुनिये तो।”
सुधीर नहीं लौटा।
2
अलका आयी है। वही अलका, जिसे एकबार देखने के लिए अजय सारा दिन प्रतीक्षा करता था- कब शाम ढले और वह आये। अलका आकर कह रही है, “अच्छा अजय’दा, अँग्रेजी में ‘पेट’ बोलकर कोई शब्द है क्या?”
अजय बोला, “हाँ है, ‘पेट’ मतलब सिर।”
“सच?”
“डिक्शनरी खोलकर देख लो- ‘पेट’ माने सिर होता है।”
“इसका मतलब, हमारी वरूणा’दी ने ठीक ही कहा है!”
अजय बोला, “अच्छा, खोपड़ी की अँग्रेजी क्या है, बताओ तो?”
अलका पलकें झपकाकर बोली, “हेड।”
“हेड मतलब तो सिर होता है।”
“खोपड़ी मतलब भी तो सिर होता है।”
अजय हँसकर बोला, “तो यही है तुम्हारा बँगला भाषा का ज्ञान! सिर और खोपड़ी भला एक ही चीज है!”
अलका हँसकर बोली, “फर्क क्या है?”
अजय गम्भीर होकर बोला, “फिर तो कहो कि तुममें और उस पाँची धोबन में कोई फर्क नहीं है- दोनों नारी हैं।”
अलका पूछ बैठी, “यह पाँची धोबन कौन है?”
“यहीं तुम्हारी गली की मोड़ पर धोबी की एक लड़की है। उम्र कम है- तुम्हारी जितनी होगी।”
वक्र हँसी हँसकर अलका बोली, “आजकल देख रही हूँ अजय’दा ने हर चीज पर गौर करना शुरु कर दिया है- धोबन तक को नहीं छोड़ते!”
अजय बोला, “क्यों नहीं। अपनी चीज अच्छी है, यह तो जाँचकर देखना होगा न?”
“कौन है आपकी अपनी चीज?”
“है एक।”
अचानक अन्यमनस्क होकर अलका पास की मेज सँवारने लगी। अजय अकारण ही खिड़की से बाहर देखने लगा।
3
दो स्वप्न दोनों देख रहे हैं।
अत्यन्त घनिष्ठ भाव से दोनों पास-पास सोये हुए हैं।
हासि का हाथ अजय के सीने पर है।
हासि और अजय, पति-पत्नी हैं।