‘Zaroori Hai Prem Karte Rehna’, poem by Mahima Shree
1
जब कभी हम मिलें
मुझे हर वो दरख़्त, चिड़िया, तितली
औ उन सारे जंगली फूलों के नाम बताना
जो तुम्हारी उदास शामों में
जुगनू की तरह नुमाया थे
तमाम उलझनों को सुलझाने का
शायद अनजाने ही कोई सिरा हाथ आ जाए।
2
पहाड़ अपने गीत झरनों को सौंपते आए हैं
सैलानी सोचते हैं-
‘झरने कितना सुंदर गाते हैं।’
3
शब्दों की पगडण्डियों पर चलकर देखा
कई बार ये भटकाती हैं,
उलझाती भी हैं,
एक प्रेम ही है जो बचा ले जाता है…
अत: ज़रूरी है प्रेम करते रहना!
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