कितनी हलचलों को
खुद में समेटकर तुम
कितना खामोश हो
बस एक लहर सी उठती मन में
सराबोर कर वापस लौट जाती है
घुलते सूरज को सौंप देता हूँ तुम्हें
ताकि चाँद तारों से सजा
रौशनदान वापस कर सको…

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शाहिद सुमन
चलो रफू करते हैं

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