राजा की सनक
ग्रहों की कुदृष्टि
मौसमों के उत्पात
बीमारी, बुढ़ापा, मृत्यु, शत्रु, भय
प्रिय-बिछोह
कम नहीं हैं ये दुःख आदमी पर!

ऊपर से
जब घर जलते हैं
तो आदमी के दिन जलते हैं
फ़सलें डूबती हैं
आदमी के सपने डूब जाते हैं
पशु मरते हैं
आदमी के हाथ-पाँव कटते हैं
ईश्वर लड़ते हैं
तो आदमी ही मरते हैं।

आदमी से ज़्यादा दुखी
कौन है इस संसार में?
सारी धरती के दुःख
आख़िर इसको ही सहने पड़ते हैं।

***

मानबहादुर सिंह की कविता 'लड़की जो आग ढोती है'

मानबहादुर सिंह की किताब यहाँ ख़रीदें:

Previous articleएक कुत्ता और एक मैना
Next articleबैलगाड़ी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here