रात आई है, बहुत रातों के बाद आई है
देर से, दूर से, आई है मगर आई है
मरमरीं सुब्ह के हाथों में छलकता हुआ जाम आएगा
रात टूटेगी उजालों का पयाम आएगा
आज की रात न जा

ज़िंदगी लुत्फ़ भी है, ज़िंदगी आज़ार भी है
साज़-ओ-आहंग भी, ज़ंजीर की झंकार भी है
ज़िंदगी दीद भी है, हसरत-ए-दीदार भी है
ज़हर भी, आब-ए-हयात-ए-लब-ओ-रुख़्सार भी है
ज़िंदगी ख़ार भी है, ज़िंदगी दार भी है
आज की रात न जा

आज की रात बहुत रातों के बाद आई है
कितनी फ़र्ख़न्दा है शब, कितनी मुबारक है सहर
वक़्फ़ है मेरे लिए तेरी मोहब्बत की नज़र
आज की रात न जा

मख़दूम मुहिउद्दीन
मखदूम मोहिउद्दीन या अबू सईद मोहम्मद मखदूम मोहिउद्दीन हुजरी (4 फ़रवरी 1908 - 25 अगस्त 1969), भारत से उर्दू के एक शायर और मार्क्सवादी राजनीतिक कार्यकर्ता थे। वे एक प्रतिष्ठित क्रांतिकारी उर्दू कवि थे।