नासमझ, पागल, ये गंवार सी आँखें,
सड़कों पे खोजती हैं, निहारती आँखें,

रहता नहीं शहर में, हैं जानती आँखें,
उसको तलाशती हैं, इश्तहार सी आँखें,

नालों के खारेपन में उतरायी भी आँखें,
रह गईं फिर भी ये दागदार सी आँखें।

बमुश्किल मिलती हैं, ख्वाब में आँखें,
बसती हैं मीलों दूर वो कीमती आँखें।

उसे दिखी बेमोल पत्थर सी ये आँखें,
रह गई प्यासी ही, ये झील सी आँखें।

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रिया गुप्ता (प्रहेलिका)
Hi....i am riya ...riya prahelika is my pen name. Writing is my medicine Poetry is my doctor U can call me an animal lover and strictly a tea lover..

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