नासमझ, पागल, ये गंवार सी आँखें,
सड़कों पे खोजती हैं, निहारती आँखें,
रहता नहीं शहर में, हैं जानती आँखें,
उसको तलाशती हैं, इश्तहार सी आँखें,
नालों के खारेपन में उतरायी भी आँखें,
रह गईं फिर भी ये दागदार सी आँखें।
बमुश्किल मिलती हैं, ख्वाब में आँखें,
बसती हैं मीलों दूर वो कीमती आँखें।
उसे दिखी बेमोल पत्थर सी ये आँखें,
रह गई प्यासी ही, ये झील सी आँखें।