तुम नफ़रत के अनुयायी हो
मन-मस्तिष्क को
उबलते रखने को
लालायित

मुट्ठियों को भींचकर
किसी पर
टूट पड़ने
को आमादा

तुम्हारी हँसी में
मृदुता नहीं, अट्टहास है
अपशब्दों की अभ्यस्त जिह्वा से
तुम गीत नहीं गा सकते

बाँसुरी
तुम्हें आनन्दित
नहीं कर सकती

तनी हुई पेशियों वाले
संकुचित हृदय से
प्रेम निचुड़कर रिस चुका है
घृणा बची है
यही तुम्हारे जीवन की पूँजी है

जबकि पहले तुम मुक्त थे
प्रेम चुन सकते थे

अफ़सोस
तुम अभिशप्त हो…