‘Aboojh Pyas’, a poem by Harshita Panchariya

तुमसे मिलने के बाद
मैं सोचती हूँ कि
अभी कितनी प्यास शेष है मुझमें

प्रेम के इस अरण्य में
मिले अथाह जंगली फूल,
अनंत अंतहीन बेलें,
जो मुझसे लिपटे रहना चाहती हैं
सदियों तक

फिर भी शेष है
दो पत्तियों के मध्य वह रिक्तता
जिनका भराव ओस की बूँदों
से ही सम्भव है।

ये ओस की बूँदें
चाँद के जाने का दुःख हैं
या रात्रि के अंतिम पहर
के सुख से आह्लादित स्वेद कण।

इस सुख-दुःख की गणना में
ये अरण्य इतना सूक्ष्म हो गया है
कि मुझे लगता है
मैं अपने पग तुम्हारी हथेली
पर ही धर पाऊँगी।

शायद फिर…
मुझे इस प्यास से विश्राम मिले।

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