उसका समय
मेरे समय से अलग है—
जैसे उसका बचपन, उसकी गुड़ियाँ-चिड़ियाँ
यौवन आने की उसकी पहली सलज्ज पहचान अलग है।
उसकी आयु
उसके एकान्त में उसका प्रस्फुटन,
उसकी इच्छाओं का सरस वसन्त
और उसके बिस्तर के पास
उठने की घण्टी बजाती घड़ी
उसका समय अलग है।
उसकी ऊब की दोपहर,
बारिश में भींगता
उसके दरवाज़े के पास का वृक्ष,
आकाश पर नहीं, पड़ोस की दीवार पर खुलती
उसकी खिड़की का समय अलग है।
अपने समय को वह फ़र्श पर बिछाती है
आँचल की तरह कसती है अपने शरीर से
घुँघरु की तरह अपने पैरों से बाँधती है।
अपने समय से मैं उसे पुकारता हूँ
अपने समय से वह मुझे बुलाती है।
हमारा समय अलग है
और साथ है।
अशोक वाजपेयी की कविता 'प्यार करते हुए सूर्य-स्मरण'