‘Ankahe Mein Hota Hai Zyada Arth’, a poem by Gaurav Adeeb
कुछ चीज़ों को ठीक समय पर ही होना चाहिए
प्रणय का निवेदन ठीक तब किया जाए
जब टूटने को हो सब्र का बाँध
शायद सबसे उपयुक्त शब्दावली
तभी ढूँढना सम्भव होगा
जीवन की सार्थकता
पूछी जाए अंतिम साँस से ठीक पहले,
कुछ चीज़ों को
छोड़ना नहीं चाहिए बाद के लिए
घट जाती है उनकी तासीर,
रखकर छोड़ देना गर्म चाय कभी,
करके देखना, क्या ही बुरा है इसमें
मैं जबकि थक चुका हूँ
लेकिन
मैं लिख देना चाहता हूँ
आज के पूरे उत्साह को
शब्द-शब्द करके सारा
जिनमें हो पल-पल का लेखा-जोखा
मैं तुम्हारी तरह ‘थैंक यू’ नहीं लिखूँगा
न मेरी आदत है
और
न मैं समझता हूँ इसे ज़रूरी
चूँकि मैं जानता हूँ ठण्डी चाय बेस्वाद होती है
मैं ठीक इसी पल
उत्साह का पार्सल तुम्हें भेज रहा हूँ
खोलना इसे आहिस्ते-से
रात भेजी है मैंने
तुम साथ न होती तो
दिन न बचा पाता
तुम न होती तो
रात न भेज पाता
तुम न होती तो
तुम न होती तो
तुम न होती तो
मैं इसे यूँही छोड़ देना चाहता हूँ
कुछ चीज़ें वक़्त पर हो जाएँ ज़रूरी है
पूरी हों
ज़रूरी नहीं
अधूरेपन में विस्तार की ज़्यादा सम्भावनाएँ होती हैं
अनकहे में होता है ज़्यादा अर्थ!
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