‘Apna Abhinay Itna Achchha Karta Hoon’, a poem by Naveen Sagar

कविता संग्रह ‘जब ख़ुद नहीं था’ से 

घर से बाहर निकला
फिर अपने बाहर निकल कर
अपने पीछे-पीछे चलने लगा
पीछे मैं इतने फासले पर छूटता रहा
कि ओझल होने से पहले दिख जाता था

एक दिन
घर लौटने के रास्ते में ओझल हो गया
ओझल के पीछे कहाँ जाता
घर लौट आया
दीवारें धुँधली पड़ कर झुक सी गईं
सीढ़ियाँ नीचे से ऊपर
ऊपर से नीचे होने लगीं

पर वह घर नहीं लौटा
घर से बाहर निकला
फिर मुझसे बाहर निकल कर चला गया

मैं आईने में देखता हूँ
वह आईने में से मुझे नहीं देखता
मैं बार बार लौटता हूँ
पर वह नहीं लौटता

घर में किसी को शक नहीं है
मूक चीज़ें जानती हैं पर मुझसे पूछती नहीं हैं
कि वह
कहाँ गया और तुम कौन हो।
अपना अभिनय इतना अच्छा करता हूँ
कि हूबहू लगता हूँ
दरवाजे खुल जाते हैं-
नींद के नीम अँधेरे चलचित्र में जागा हुआ
सूने बिस्तर पर सोता हूँ।

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नवीन सागर
हिन्दी कवि व लेखक! कविता संग्रह- 'नींद से लम्बी रात', 'जब ख़ुद नहीं था'!

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