करता हूँ कृतित्व सारा
मैं अपने नाम
जितने हैं द्वार
जीवन-मरण के बीच
खोले हैं ख़ुद मैंने
प्रतिदिन
फिर ख़ुद ही आबद्ध हुआ
किसी वृत्त में,
अस्थिर हो
खोया मैंने ज्ञान-विवेक
तोड़ी सीमाएँ सभ्यता की
कृतित्व अपने नाम किया
उसका भी
बुझते-बुझते बुझाता रहा
एक-एक कर शिखाएँ
किसी अनचीन्हे गाम पर
उतरकर
शोक, अनादर से ख़ुद को
मिटाकर
साथ लिये सिर्फ़ आत्मा को मैं
रहा घूमता
करता हूँ कृतित्व इसका भी
अपने नाम।