करता हूँ कृतित्व सारा
मैं अपने नाम
जितने हैं द्वार
जीवन-मरण के बीच
खोले हैं ख़ुद मैंने
प्रतिदिन
फिर ख़ुद ही आबद्ध हुआ
किसी वृत्त में,
अस्थिर हो
खोया मैंने ज्ञान-विवेक
तोड़ी सीमाएँ सभ्यता की
कृतित्व अपने नाम किया
उसका भी
बुझते-बुझते बुझाता रहा
एक-एक कर शिखाएँ
किसी अनचीन्हे गाम पर
उतरकर
शोक, अनादर से ख़ुद को
मिटाकर
साथ लिये सिर्फ़ आत्मा को मैं
रहा घूमता
करता हूँ कृतित्व इसका भी
अपने नाम।

सनन्त ताँती
असमिया कविता में वामपंथी विचारधारा के प्रगतिशील कवि। जन्म: 1952। अनेक काव्य-संग्रह प्रकाशित। चर्चित हैं- 'उज्जवल नक्षत्रर संधानत' एवं 'निजर विरुद्धे शेष प्रस्ताव'।