जब तक चंद लुटेरे इस धरती को घेरे हैं
अपनी जंग रहेगी
अहल-ए-हवस ने जब तक अपने दाम बिखेरे हैं
अपनी जंग रहेगी

मग़रिब के चेहरे पर यारो अपने ख़ून की लाली है
लेकिन अब उसके सूरज की नाव डूबने वाली है
मशरिक़ की तक़दीर में जब तक ग़म के अँधेरे हैं
अपनी जंग रहेगी

ज़ुल्म कहीं भी हो हम उसका सर ख़म करते जाएँगे
महलों में अब अपने लहू के दिए न जलने पाएँगे
कुटियाओं से जब तक सुब्हों ने मुँह फेरे हैं
अपनी जंग रहेगी

जान लिया ऐ अहल-ए-करम, तुम टोली हो अय्यारों की
दस्त-ए-निगर क्यूँ बनके रहे, ये बस्ती है ख़ुद्दारों की
डूबे हुए दुख-दर्द में जब तक साँझ-सवेरे हैं
अपनी जंग रहेगी!

हबीब जालिब की नज़्म 'दस्तूर'

Recommended Book:

Previous articleकारवाँ गुज़र गया
Next articleदीवार में एक खिड़की रहती थी
हबीब जालिब
हबीब जालिब एक पाकिस्तानी क्रांतिकारी कवि, वामपंथी कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने मार्शल लॉ, अधिनायकवाद और राज्य दमन का विरोध किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here