अरे कहीं देखा है तुमने
मुझे प्यार करने वालों को?
मेरी आँखों में आकर फिर
आँसू बन ढरने वालों को?

सूने नभ में आग जलाकर
यह सुवर्ण-सा हृदय गलाकर
जीवन-संध्या को नहलाकर
रिक्त जलधि भरने वालों को?

रजनी के लघु-लघु तम कन में
जगती की ऊष्मा के वन में
उसपर परते तुहिन सघन में
छिप, मुझसे डरने वालों को?

निष्ठुर खेलों पर जो अपने
रहा देखता सुख के सपने
आज लगा है क्यों वह कँपने
देख मौन मरने वाले को?

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जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 - 15 नवम्बर 1937), हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया।

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