दुनिया भर की तमाम प्यारी औरतों और आदमियों और बच्चों
मेरे अपने लोगों
सारे संगीतों, महान कलाओं, विज्ञानों
बड़ी चीज़ें सोच-कह-रच रहे समस्त सर्जकों
अब तक के सारे संघर्षों, जय-पराजयों
प्यारे प्राणियों, चरिन्दों, परिन्दों
ओ प्रकृति
सूर्य, चन्द्र, नक्षत्रों सहित पूरे ब्रह्माण्ड
हे समय, हे युग, हे काल
अन्याय से लड़ते शर्मिंदा करते हुए निर्भय (मुझे कहने दो) साथियों
तुम सब ने मेरे जी को बहुत भर दिया है, भाई
अब यह पारावार मुझसे बर्दाश्त नहीं होता
मुझे क्षमा करो
लेकिन आख़िर क्या मैं थोड़े से चैन किंचित् शान्ति का भी हक़दार नहीं!