नाले के आगे सुनसान रस्ते से गुज़रते हुए कल रात मुझे कुछ अजीब सा दिखाई दिया। हालाँकि सर्दी बहुत थी फिर भी मैंने रुक कर उसे देखने का इरादा किया। वह कुछ लीथड़ों, कुछ रुई के टुकड़ों में लिपटा नवजात बच्चा-सा था। इन्सान का बच्चा। पहले तो मैं डर सा गया क्यूंकि बच्चा मरा हुआ था और ठण्ड से लाश बुरी तरह अकड़ गई थी। मुझे कुछ सुझाई नहीं दिया लेकिन फिर मैंने उसके पैरों के बीच देखने के लिए अपने जूते से उसके पैर को हिलाया, बच्चे की लाश पूरी तरह करवट पलट गई। हलकी रौशनी में उसका खुला हुआ मुंह मेरे सामने आ गया। मैं डरा कि अगर किसी ने मुझे यहाँ देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी इसलिए जल्दी से कमरे की तरफ बढ़ गया। और रजाई में घुसते ही सब भूल-भाल गया।

सुबह उसी रास्ते से गुज़रते हुए मुझे रात वाली बात याद आ गई और पेशाब करने के बहाने मैं बच्चे वाली जगह खड़ा हो गया। वहां कुछ नहीं था। थोड़ा ध्यान दिया तो कुछ दूर पर उसकी रुई और कपड़े पड़े थे। मैंने महसूस किया कि मासूम बच्चे को या तो कुत्ते ले गए या फ़रिश्ते। फिर मैंने फरिश्तों वाली बात पर यकीन कर लिया और आगे बढ़ गया।

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उसामा हमीद
अपने बारे में कुछ बता पाना उतना ही मुश्किल है जितना खुद को खोज पाना.

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