प्यार के क्षणों में
कभी-कभी
ईश्वर की तरह लगता है मर्द
औरत को
ईश्वर… ईश्वर…
की पुकार से
दहकने लगता है
उसका समूचा वजूद
अचानक
कहता है मर्द—
“देखो
मैं ईश्वर हूँ”
औरत
देखती है उसे
और ईश्वर को खो देने की पीड़ा से
बिलबिलाकर
फेर लेती है
अपना मुँह।
ज्योत्स्ना मिलन की कविता 'करवट'