आ साजन, आज बातें कर लें

तेरे दिल के बाग़ों में हरी चाय की पत्ती-जैसी
जो बात जब भी उगी, तूने वही बात तोड़ ली

हर इक नाज़ुक बात छुपा ली, हर इक पत्ती सूखने डाल दी

मिट्टी के इस चूल्हे में से हम कोई चिंगारी ढूँढ लेंगे
एक-दो फूँकें मार लेंगे, बुझती लकड़ी फिर से बाल लेंगे

मिट्टी के इस चूल्हे में इश्क़ की आँच बोल उठेगी
मेरे जिस्म की हण्डिया में दिल का पानी खौल उठेगा

आ साजन, आज खोल पोटली

हरी चाय की पत्ती की तरह
वही तोड़-गँवायीं बातें, वही सम्भाल-सुखायीं बातें
इस पानी में डालकर देख, इसका रंग बदलकर देख

गर्म घूँट इक तुम भी पीना, गर्म घूँट इक मैं भी पी लूँ
उम्र का ग्रीष्म हमने बिता दिया, उम्र का शिशिर नहीं बीतता

आ साजन, आज बातें कर लें…

अमृता प्रीतम की कहानी 'जंगली बूटी'

Book by Amrita Pritam:

Previous articleमृत्युंजय
Next articleकविताएँ – मई 2020
अमृता प्रीतम
(31 अगस्त 1919 - 31 अक्टूबर 2005)पंजाब की सबसे लोकप्रिय लेखिका, कवयित्री व उपन्यासकारों में से एक।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here