Poems: Balkavi Bairagi

चाँद में धब्बा

गोरे-गोरे चाँद में धब्बा
दिखता है जो काला-काला,
उस धब्बे का मतलब हमने
बड़े मज़े से खोज निकाला।
वहाँ नहीं है गुड़िया-बुढ़िया
वहाँ नहीं बैठी है दादी,
अपनी काली गाय सूर्य ने
चँदा के आँगन में बाँधी।

ख़ुद सागर बन जाओ

नदियाँ होतीं मीठी-मीठी
सागर होता खारा,
मैंने पूछ लिया सागर से
यह कैसा व्यवहार तुम्हारा?
सागर बोला, सिर मत खाओ
पहले ख़ुद सागर बन जाओ!

आकाश

ईश्वर ने आकाश बनाया
उसमें सूरज को बैठाया
अगर नहीं आकाश बनाता
चाँद-सितारे कहाँ सजाता?
कैसे हम किरणों से जुड़ते?
ऐरोप्लेन कहाँ पर उड़ते?

चाय बनाओ

बड़े सवेरे सूरज आया,
आकर उसने मुझे जगाया,
कहने लगा, “बिछौना छोड़ो
मैं आया हूँ सोना छोड़ो!”

मैंने कहा, “पधारो आओ,
जाकर पहले चाय बनाओ,
गरम चाय के प्याले लाना
फिर आ करके मुझे जगाना,
चलो रसोईघर में जाओ
दरवाज़े पर मत चिल्लाओ।”

विश्वास

शाम ढले पंछी घर आते,
अपने बच्चों को समझाते।
अगर नापना हो आकाश,
पंखों पर करना विश्वास।
साथ न देंगे पंख पराए,
बच्चों को अब क्या समझाए?

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Book by Balkavi Bairagi:

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बालकवि बैरागी
हिन्दी कवि और लेखक आदरणीय बालकवि बैरागी जी का जन्म जन्म १० फरवरी १९३१ को मंदसौर जिले की मनासा तहसील के रामपुर गाँव में हुआ था। बैरागी जी ने विक्रम विश्वविद्यालय से हिंदी में एम्.ए. किया था। इनकी मृत्यु 13 मई 2018 को इनके गृह नगर मनासा में हुई।

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