बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं
देखो ख़ाली दामन वाले अब भी हैं
देखो वो भी हैं जो सब कह सकते थे
देखो उनके मुँह पर ताले अब भी हैं
देखो उन आँखों को जिन्होंने सब देखा
देखो उन पर ख़ौफ़ के जाले अब भी हैं
देखो अब भी जिंस-ए-वफ़ा नायाब नहीं
अपनी जान पे खेलने वाले अब भी हैं
तारे माँद हुए पर ज़र्रे रौशन हैं
मिट्टी में आबाद उजाले अब भी हैं!
ज़ेहरा निगाह की नज़्म 'मैं बच गई माँ'