‘Beswad’, a poem by Yogesh Dhyani

शहर की इन
अँधेरी झोपड़ियों में
पसरा हुआ है
मनो उदासियों का
फीकापन

दूसरी तरफ़
रंगीन रोशनियों से सराबोर
महलनुमा घरों में
उबकाइयाँ हैं
ख़ुशियों के
अतिरिक्त मीठेपन से

धरती घूमती तो है
मथनी की तरह लगातार
फिर क्यों नहीं
एक-सा हो जाता है
ये स्वाद हर कहीं!

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