हमसे कुचलकर कोई
हिलते-भागते दृश्‍य में पीछे
छूट जाता है,
हम जान छोड़कर भागते हैं

जो लोग भागने की कठोरता को
देख रहे हैं,
जो अपमानित हैं,
जिन्‍हें ग़ुस्सा आता है,
और जिन्‍हें हम भाषा की किसी दरार में
धकेल सकते हैं

बिना तर्क इस तरह अचानक
चले जाते हैं
कंधों पर बंदूक़ें टाँगे
और मारे जाते हैं

ख़बर पढ़ी जब
भय हुआ कि वे मारे जा रहे हैं
वे मारेंगे

कहो यह बच्‍चा जो अभी सोया है
माँ के पास
वहाँ रहे, जहाँ हमें रहना नहीं पड़ा
और हम बचे रहे

हमने समझा हम बच गए हैं
भूल गए कि अगर एक नहीं बचता
तो कोई बच नहीं सकता।

'अपना अभिनय इतना अच्छा करता हूँ'

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नवीन सागर
हिन्दी कवि व लेखक! कविता संग्रह- 'नींद से लम्बी रात', 'जब ख़ुद नहीं था'!

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