‘Bhasha Ki Lipi’, a poem by Rashmi Saxena

तुम्हें अभी और खोदने होंगे
आत्मा के गहरे कुँए

हृदय तल से
अभी और हटानी होंगी
गर्वित कठोर परतें

तब कहीं जाकर
ढूँढ पाओगे
मेरा प्रेम रूपी जल

जो फूट पड़ेगा
तुम्हारी आँखों के जलाशयों से

अभी तुम्हें और
परिवर्तित करना होगा
स्वयं को

अभी तुम्हें बन जाना होगा
प्रेम से भरी हुई स्त्री

बस उसी रोज़
पढ़ पाएगी तुम्हारे भीतर की स्त्री
मेरे आँसुओं की भाषा की लिपि!

यह भी पढ़ें:

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हर्षिता पंचारिया की कविता ‘पीड़ा की परिभाषा’
रोहित ठाकुर की कविता ‘भाषा’

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