‘भेड़-भेड़िये, भाई-भाई!’ – रामनारायण उपाध्याय

बोले – कहानी कहो।

कहा – कहानी सुनो, एक था राजा।

बोले – राजाओं की कहानी हमें नहीं सुननी है, वे तो इतिहास की वस्‍तु बन चुके।

कहा – एक था मंत्री।

बोले – मंत्रियों का क्‍या भरोसा, अनेक बार कहानी समाप्‍त होने के पूर्व ही वे अपने स्‍थान से बदल जाते हैं।

कहा – अच्‍छा तो मैं तुम्‍हें एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ जो सबसे पुरानी है, फिर भी सर्वथा नवीन है।

एक जंगल था। उसमें कुछ भेड़िये और भेड़ें एक साथ रहते थे। दोनों को एक दूसरे से कोई शिकायत नहीं थी। कभी-कभी जब कोई भेड़ चरते-चरते रास्‍ता भटक जाती और कई दिनों तक लौटकर नहीं आती थी, तो वे उसे भगवान का कोप समझकर चुप रह जाती थीं। अनेक बार ऐसा भी होता कि भेड़ों की टोली में से कुछ भेड़ें गायब हो जाती थीं लेकिन कोई भी उस ओर ध्‍यान नहीं देता था। धीरे-धीरे भेड़ों की संख्‍या घटती गई, भेड़ियों का उत्‍पात बढ़ता गया।

अंत में भे‍ड़ियों के इस उत्‍पात से तंग आकर एक दिन भेड़ों ने अपनी एक सभा बुलाई और मुखिया से कहा – भाइयो, सहने की भी हद होती है। अगर हम इसी तरह दबते रहेंगे तो एक दिन जंगल के इतिहास में भेड़ों का नामोनिशान मिट जाएगा। वास्‍तव में जंगलों पर हमारा जन्‍मसिद्ध अधिकार है। संख्‍या की दृष्टि से भी हम किसी से कम नहीं हैं। शक्ति भी हमारे पास है। लेकिन हमारी जो सबसे बड़ी कमजोरी है, वह यह कि हम संगठित नहीं हैं। हममें समस्‍त भेड़ों को अपना परिवार समझने की भावना नहीं है। हम किसी भी भेड़ पर आनेवाले संकट को अपना संकट नहीं मानते। जब तक हम दूसरों के दर्द को अपना नहीं समझेंगे और संकट का मुकाबला सामूहिक रूप से नहीं करेंगे तब तक हम इन खूँखार भे‍ड़ियों से अपनी रक्षा नहीं कर सकेंगे। आइए, आज हम निश्‍चय करें कि अगर किसी भी भेड़िये ने एक भी भेड़ की ओर बुरी निगाह से देखा तो हम उसका सामूहिक रूप से डटकर मुकाबला करेंगे, और जब तक एक भी भेड़ में दम-में-दम है तब तक किसी भी भेड़ का अपहरण नहीं होने देंगे।

भेड़ों के इस निर्णय की बात जब भे‍ड़ियों ने सुनी तो पाँवों तले से जमीन खिसक गई। उन्‍होंने तुरंत ही एक संकटकालीन अधिवेशन बुलाया और इस विद्रोह का मुकाबला करने के लिए सबसे अपने-अपने सुझाव माँगे। किसी ने कहा कि हमें उनसे सीधी लड़ाई लड़नी चाहिए और हो सके तो एक ही बार में उनका काम तमाम कर देना चाहिए। न रहेगी भेड़, न मचेगा झगड़ा।

मुखिया ने समझाया कि संख्‍या में भेड़ें हमसे अधिक हैं और सीधे मुकाबले में उन पर विजय नहीं पाई जा सकती।

दूसरे ने कहा कि हमें उन पर ऐसा दबाव डालना चाहिए कि वे हमें हमारे हिस्‍से की भेड़ें दे दिया करें और उसके बदले में हम उन्‍हें सुरक्षा प्रदान करेंगे। मुखिया ने कहा कि भेड़ें अब इतनी मूर्ख नहीं रहीं जो किसी की मौत पर अपनी सुरक्षा चाहें।

इस पर एक चालाक भे‍ड़िये ने कहा कि यह समय बुद्धिमानी से अपना काम निकालने का है। जब तक भेड़ें और भेड़िये अलग-अलग रहेंगी तब तक हमारे स्‍वार्थों की रक्षा होने वाली नहीं है। आज तो हमें किसी भी तरह भेड़ और भेड़ियों को एक साथ रहने के लिए राजी करना चाहिए और इसके लिए मैंने एक उपाय खोज निकाला है। हमें शीघ्र ही भेड़ और भेड़ियों का मिला-जुला एक सम्‍मेलन बुलाना चाहिए और उसमें इस बात की घोषणा करनी चाहिए कि वास्‍तव में भेड़ और भेड़िये भाई-भाई हैं और संकट आने पर हम अपने प्राण होम कर उनकी रक्षा करेंगे।

सबको उसकी बात पसंद आई और तुरंत ही एक वृद्ध भेड़िये को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेड़ों के पास निमंत्रण भिजवा दिया गया।

भेड़ों ने जब भेड़ और भे‍ड़ियों के इस मिले-जुले सम्‍मेलन की बात सुनी तो पहले तो वे चौंकीं। कुछ ने इसका विरोध भी किया और कहा कि यह सब साफ धोखा है। भेड़ और भेड़िये कभी एक साथ नहीं रह सकते।

लेकिन मुखिया ने समझाया कि जब उन्‍होंने हमें स्‍नेह से बुलाया है तो जाने में क्‍या हर्ज है। आखिर एक ही जंगल में रहकर हम कब तक दो अलग-अलग खेमों में बँटे रहेंगे? अगर उन्‍होंने कुछ गड़बड़ी की तो हम भी मुकाबला करने में पीछे नहीं हटेंगे।

इस तरह दूसरे दिन जंगल के बीचोंबीच, इतिहास में अभूतपूर्व भेड़ और भेड़ियों का एक सम्‍मेलन प्रारंभ हुआ। भे‍ड़िये बड़े ही अदब से आने वाली भेड़ों का स्‍वागत करते थे और उन्‍हें सम्‍मानपूर्वक यथोचित स्‍थानों पर बैठाते थे। उनके जुड़े हुए हाथ और झुकी हुई गर्दनों ने बरबस ही भेड़ों का मन मोह लिया। अंत में जब सभा की अध्‍यक्षता के लिए भी एक भेड़ को ही चुना गया तो भेड़ों में हर्ष की लहर छा गई और सबने तालियों की गड़गड़ाहट की तरह अपनी हुंकार से उसका समर्थन किया।

सम्‍मेलन को प्रारंभ करते हुए सम्‍मेलन के संयोजक एक भेड़िये ने कहा – ‘भाइयो, हम आदिकाल से इन जंगलों में एक साथ रहते आए हैं। दुनिया की कोई ताकत हमें एक दूसरे से जुदा नहीं कर सकती। असल में जंगल हम दोनों की मिली-जुली संपत्ति है और दोनों के मिल जुलकर रहने में ही दोनों का कल्‍याण है। अगर हम आपस में लड़ते रहेंगे तो एक दिन जंगलों पर से हमारा वर्चस्‍व उठ जाएगा और तब दो पाँववाले इनसानों से भरी दुनिया में हमारे रहने के लिए कोई ठौर और नहीं बचेगा। हमने यह भी अच्‍छी तरह समझ लिया है कि भेड़ों की सुरक्षा में ही भे‍ड़ियों का कल्‍याण है। अतएव आज ही इस भरी सभा में हम यह घोषणा करते है कि हम भेड़ों की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा देंगे। आज से न कोई भेड़ होगा न कोई भेड़िया। जंगल के रिश्‍ते से हम दोनों भाई-भाई हुए। अतएव, आइए, जरा जोर से नारा लगाइए – ‘भेड़-भेड़िये भाई-भाई!’ भेड़-भेड़िये जिंदाबाद!!’

उसके बाद भेड़ियों के विशेष आग्रह से कुछ भेड़ों ने भी सम्‍मेलन की सफलता के संबंध में अपने विचार व्‍यक्‍त किए।

अंत में उतरती हुई घनी रात की छाया में भेड़ों के सम्‍मान में भेड़ियों की ओर से एक शानदार भोज दिया गया।

लेकिन भेड़ों का कहना था कि उसमें उन्‍हें अपने ही मांस की गंध आ रही थी।

■■■

Previous articleटुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
Next articleव्याकुल चाह

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here