बोल दूँ जब झूठ, मुझको ठीक समझा जाए है
कह दिया सच, तो मुझे हैरत से देखा जाए है

आँख तुमने बंद कर ली, अब कबूतर ख़ैर क्या,
बेसबब, लड़ने से पहले क्यों तू घबरा जाए है

अब अदालत लौट आ, अपनी पुरानी साख़ पर,
धीरे-धीरे बर्फ़ सा क़ानून ज़मता जाए है

हम न जाने, कौन, कितने हमसे बेहतर आएंगें,
वक़्त का दरिया गुजरना है, गुजरता जाए है

गालियाँ ही गालियाँ अब तो सियासत बन गई,
देश की जनता का अब विश्वास उठता जाए है

इस सियासत ने हदें सब पार कर दी दोस्तो,
कर घिनौनी हरक़तें, इतिहास बदला जाए है

बकरियाँ सी चर रही जनता हमारे देश की,
गडरिया नेता नशे में चूर बहका जाए है

मुल्क़ में क्या हो गया, किसको ख़बर इस बात की,
आम है जो आदमी, अख़बार पढ़ता जाए है

उनके आने की ख़बर सुनकर, मेरा ये हाल है,
दिल उड़ानों में है, लेकिन पाँव ठहरा जाए है

आपको अब भूलने की कोशिशें करने लगा,
धीरे-धीरे मेरे दिल का ज़ख़्म भरता जाए है

ये अदा भी ख़ास होती है महब्बत की ‘सुजान’
देखकर हर बार उनको दर्द बढ़ता जाए है

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सूबे सिंह सुजान
सूबे सिंह सुजान कवि,शाईर व पेशे से अध्यापक अदबी संगम कुरूक्षेत्र साहित्य संस्था के सचिव पद पर तीन बार से हूँ कवि सम्मेलन ,मुशायरा व संगोष्ठी में भाग लेते हैं ।

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