बोलने में कम से कम बोलूँ
कभी बोलूँ, अधिकतम न बोलूँ
इतना कम कि किसी दिन एक बात
बार-बार बोलूँ
जैसे कोयल की बार-बार की कूक
फिर चुप।
मेरे अधिकतम चुप को सब जान लें
जो कहा नहीं गया, सब कह दिया गया का चुप।
पहाड़, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा के बरक्स
एक छोटा-सा टिमटिमाता
मेरा भी शाश्वत छोटा-सा चुप।
ग़लत पर घात लगाकर हमला करने के सन्नाटे में
मेरा एक चुप—
चलने के पहले
एक बन्दूक़ का चुप।
और बन्दूक़ जो कभी नहीं चली
इतनी शान्ति का
हमेशा की मेरी उम्मीद का चुप।
बरगद के विशाल एकान्त के नीचे
सम्भालकर रखा हुआ
जलते दिये का चुप।
भीड़ के हल्ले में
कुचलने से बचा यह मेरा चुप,
अपनों के जुलूस में बोलूँ
कि बोलने को सम्भालकर रखूँ का चुप।