घर में एक बूढ़ा दरख़्त!
जिसकी दरखास्त अब किसी को नहीं।
जिसकी छाया में पूरा घर फला फूला
पर अब उसकी ज़रूरत किसी को नहीं
वो लड़का जिसे वो बेटा समझता था,
जिसकी ख़ुद की भी संतानें हो गयीं,
पूरे घर को है बस उसके जाने का इंतज़ार,
अब उससे मोहब्बत किसी को भी नहीं,
क्योंकि अब वो निरर्थक, बेकार हो चुका है,
वो किसी को छाया क्या देगा,
वो तो ख़ुद दूसरों का मोहताज़ हो गया है
उसे बस मन ही मन याद करती है
वो अधेड़ उम्र की बेटी!
फिर भी वो मिलने कभी नहीं जा पायेगी,
क्योंकि उसे मायके से ज़्यादा है, ससुराल की चिंता
हाय! बूढ़ा दरख़्त!

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