पुस्तक अंश: लोग जो मुझमें रह गए
लेखिका: अनुराधा बेनीवाल
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन

मकान नहीं था वह, उसके हर कोने में घर की गमक थी। हल्के रंगों के परदे, पेंटिंग्स, छोटे मूढ़े, बड़ी-सी टोकरी में रखे जूते, बेतरतीबी से लगा हुआ छोटे-बड़े तकियों से भरा बिस्तर, जामुनी रंग के फूलों के गुलदस्ते और एक बिल्ली। यह कातिया और मैंडी का घर था, डेढ़ कमरे का। एक कोने में बिस्तर, उसके तीन तरफ़ परदे, उसी कमरे में पार्टीशन करके लगा एक बड़ा-सा काउच, जिस पर रंग-बिरंगी शॉल बिछी थी। पढ़ने का एक कोना और आरामकुर्सी। सामने बड़ी-सी खिड़की से झाँकता एक पेड़।

कुछ झिझकते हुए मैंने बातचीत शुरू की। मैं उन्हें परेशान या नाराज़ नहीं करना चाहती थी। कुछ ऐसा नहीं पूछना चाहती थी जो उन्हें बुरा लगे या पूछने लायक़ न हो, लेकिन मैं सब कुछ जानना भी चाहती थी।

क्या लेस्बियन शब्द इस्तेमाल करना ठीक है?

हाँ।”

मैंने आज से पहले किसी समलैंगिक जोड़े से बात नहीं की है तो मुझे नहीं पता, क्या पूछना ठीक है, क्या ग़लत और क्या बचकाना। अगर मैं कुछ ऊटपटाँग-सा सवाल पूछ लूँ तो प्लीज़, मुझे माफ़ करना। तुम्हें जो सवाल ठीक न लगे, उसका जवाब मत देना।

चिन्ता मत करो। तुम हमसे खुलकर कुछ भी पूछ सकती हो।

कातिया, तुम्हें पहली बार कब पता लगा कि तुम ‘गे’ हो?

बारह-तेरह साल तक तो सब कुछ औरों के जैसा ही था, लेकिन जब स्कूल में और लड़कियाँ लड़कों के बारे में बात करतीं और अपनी हसरतें और सपने बयान करतीं तो मैं ख़ाली सुनती। तेरह साल की उम्र में लगा कि मुझे भी कोई बॉयफ़्रेंड बनाना चाहिए, क्योंकि यही ‘नार्मल’ है। तो मैंने भी एक बॉयफ़्रेंड बना लिया और ज़बरदस्ती सपने देखने लगी। मैं उसके साथ फ़िज़िकल नहीं होना चाहती थी, लेकिन मुझे लगा कि मुझे ‘होना चाहिए’। ‘नार्मल’ होने का एक तरह का दबाव मैं महसूस करती थी तो मैंने उसे किस किया, उस किस से मुझे इतनी निराशा हुई कि मुझे घबराहट होने लगी। मैं सोच में पड़ गई कि जो बातें मैंने सुनी थीं, जैसा मुझे महसूस होना चाहिए था, वैसा कुछ मुझे हुआ क्यों नहीं? मुझे तो जैसे कुछ हुआ ही नहीं, न मेरे अन्दर तितलियाँ उड़ीं, न ही झुनझुनी हुई। उस वक़्त मैंने सोचा …I wish, I was someone else! मैं चाहती थी कि वह मुझसे ब्रेकअप कर ले। तब तक मुझे नहीं पता था कि मैं गे हो सकती हूँ। मुझे लगा कि शायद वो लड़का मेरे लिए सही नहीं है। लेकिन उस किस के बाद से लड़कों से एक दूरी बननी शुरू हो गई। अपने आप कोई दीवार-सी बननी शुरू हो गई। मैं सिर्फ़ ऐसे लड़कों से दोस्ती करती, जिन्हें पाना नामुमकिन होता। I had a crush on my teacher, who was married. May be because he was unavailable. मैं नार्मल भी रहना चाहती थी और अनकम्फ़र्टेबल भी नहीं होना चाहती थी।

कातिया और मैंडी को देखकर लगा कि शायद कातिया लड़की के रोल में होगी और मैंडी जो थोड़ी टॉम-बॉय जैसी लग रही थी, वह लड़के का रोल करती होगी। ऐसे ही तो होता है। मैंने तो यही सुना था कि गे कपल्स में एक आदमी के रोल में होता है, एक औरत के। इतने सारे सवाल थे मेरे ज़ेहन में, सब कैसे पूछ लूँ?

कातिया ने मैंडी से पूछा कि क्या वह डिनर अभी करेगी। मैं भी उन्हीं के साथ डिनर करने वाली थी। मैंडी ने बताया, मशरूम का सीज़न है तो आजकल घर में ख़ूब मशरूम बनते हैं। वे दोनों वेज़िटेरियन हैं। कातिया तो डेयरी प्रोडक्ट का भी इस्तेमाल नहीं करती। डिनर दोपहर को बनाया जा चुका था। अभी बस गरम करना था। खाना ख़त्म करके मैंने और कातिया ने चाय पी, और मैंडी ने हॉट चॉकलेट। किसे बर्तन रखने हैं, किसे सर्व करना है, कौन चाय बनाएगा, कौन कप रखेगा, यह सब एकदम सिंक में था, कोई जेंडर हाइरार्की नहीं थी। 

जब मैं सत्रह बरस की हुई तो मेरा लड़कियों पर क्रश होना आम बात हो गई। मैं बड़ी ख़ुश होती जब मेरी कोई लड़की दोस्त अपने बॉयफ़्रेंड से ब्रेकअप करती। 

खिलखिलाते हुए कातिया कहती है। 

उन्हीं दिनों मैंने पहली बार एक लड़की को किस किया, बहुत अच्छा लगा! उसके बाद मैंने कई लड़कियों को किस किया। उनके लिए शायद कभी-कभी मज़ाक़ होता होगा, लेकिन मुझे अपने गहरे में पता था कि मैं ‘हेट्रो’ नहीं हूँ।

मैं अठारह साल की हुई तब अपने गाँव से देश की राजधानी हेलसिंकी आई। यहाँ गे प्राइड परेड का हिस्सा बनी। गे परेड वाले दिन मैंने एक गे लड़की को किस किया, वह बहुत अमेजिंग था। अपने को जानना और ऐसे इनसान से मिलना जो ख़ुद को जानता हो, बहुत ख़ास होता है। उस दिन मैंने मम्मी को फ़ोन करके बताया कि मैं गे हूँ।

मम्मी ने कहा कि उन्हें पता था।

पापा को जब पहली बार पता चला तो वो ग़ुस्सा नहीं, उदास हुए। डर गए। उन्हें शायद इस अनजाने रास्ते का डर था। ‘रिश्तेदारों, दोस्तों से क्या कहेंगे’—शायद इसका डर था, लेकिन वे ग़ुस्सा नहीं थे।

मैंडी के माँ-बाप का तलाक़ हो चुका है। वह बताती है—

माँ को शायद पहले से अन्दाज़ा था, क्योंकि जब से मैं कातिया से मिली थी, उसका नाम बार-बार घर में सुनाई देने लगा था। मेरे बताने पर वह मेरे लिए ख़ुश हुई कि फ़ाइनली मुझे कोई ऐसा मिल गया है, जिसके साथ मैं ख़ुश हूँ। लेकिन पापा ने जब पहली बार सुना कि मैं एक लड़की को डेट कर रही हूँ तो उन्होंने दुबारा पूछा, जैसे उन्हें ठीक से सुनाई न दिया हो—‘लड़की?’ उन्हें अपने दोस्तों से मुझे और कातिया को मिलवाने में मुश्किल होती। कहते, ‘दिस इज़ मैंडी, माय डॉटर, एंड दिस इज़ कातिया।’ बस इतना ही। वे कातिया को मेरी गर्लफ़्रेंड की तरह नहीं मिलवाते थे। वो नार्मल होने की एक्टिंग करते… लेकिन एक बार उनके मुँह से निकल गया कि वे ख़ुश हैं कि उनकी बेटी गे है, बेटा नहीं।

मैं शायद आठ या नौ साल की थी, जब मैंने दो लड़कियों को किस करते हुए किसी वीडियो में देखा। मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरा पहला क्रश भी कैटवुमन थी। मुझे लड़कों से फ़िज़िकल होने में डर लगता था। जब मैं पन्द्रह की हुई, तब एक लड़का मुझे चर्च कैम्प में मिला। मुझे वह पसन्द आया, लेकिन हमारे बीच कुछ हुआ नहीं। उसने एक बार मुझे किस करने की कोशिश की, लेकिन मैं दूर भागती रही …It was embarrassing… मुझे सोचकर ही घिन होने लगी। फिर वह भी थक गया …and he gave up!

“I was afraid of losing control, emotionally and physically… I avoided relationships or preferred to have impossible relationships like long distance or married men.

जब उन्नीस की हुई, तब मैंने अपने बेस्ट फ़्रेंड के साथ ख़ूब देर तक शराब पीने के बाद सेक्स किया। क्योंकि यही होता है, मैंने फ़िल्मों में देखा था, सबसे सुना था। तो मैंने भी किया। लेकिन वो अच्छा नहीं था। उस सेक्स का एहसास अच्छा नहीं था। ऐसा कोई ट्रॉमेटिक भी नहीं था उस वक़्त, लेकिन अब जब उसे याद करती हूँ तो वह कोई अच्छी याद नहीं है।

जब मैं बीस की हुई, तब मुझे लगने लगा कि मैं गे हूँ। तब तक मैंने किसी लड़की के साथ कोई फ़िज़िकल टच महसूस नहीं किया था। जो दोस्त मेरी डेट फ़िक्स करने में इंट्रेस्टेड रहते थे, उनसे मैंने यों ही एक दिन कहा कि मैं लड़कियों में भी इंट्रेस्टेड हूँ। ज़्यादातर रीएक्शन सपोर्टिव थे। और तो और, कोई हैरान भी नहीं था; जैसे कि मुझे छोड़कर सबको पहले से पता हो। मैंने तब भी अपने पेरेंट्स को नहीं बताया। मैंने सोचा कि जब कोई मिलवाने को होगी, तब बताऊँगी।

यह रियलाइज़ेशन होने के बाद मैं काफ़ी रिलैक्स हो गई। एकदम-से जैसे सब समझ में आने लगा। जैसे एक पहेली-सी सुलझ गई। अब सब फ़िट होने लगा था। अब मैं अपने लड़के दोस्तों के साथ भी ज़्यादा कम्फ़र्टेबल थी। अब कोई दिखावा नहीं था।

मैं दोनों को ध्यान से सुन रही थी…

कातिया—मुझे कभी लड़कों के कपड़े पहनने का शौक़ नहीं था। न ही मैं छोटे बाल रखना चाहती थी। लेकिन जब मैं स्कर्ट और हील्स पहनकर क्लब जाती तो सब आदमी मुझ पर लाइन मारते, कोई लड़की मुझे नोटिस नहीं करती थी। लेकिन मुझे अटेंशन तो लड़कियों की चाहिए थी तो मैंने बाल छोटे कराए और थोड़ा मैस्कुलिन एक्ट करने लगी, ताकि मुझे लड़कियों की अटेंशन मिले।

मैंडी—एक समय मैं गे दिखना चाहती थी। बाल छोटे कराए और लड़कों के जैसे चलने और दिखने की कोशिश करने लगी। ख़ूब सारी अटेंशन मिली, लेकिन मुझे लगा कि लड़कियाँ मेरी लुक को पसन्द कर रही हैं, जो मैं हूँ उसे नहीं। तो मैंने वापस अपने जैसा रहना शुरू कर दिया। मैं नहीं चाहती थी कि कोई लड़की मेरी गर्लफ़्रेंड सिर्फ़ मेरा हेयर स्टाइल या मैस्कुलिन स्टाइल देखकर बने। मैं मैस्कुलिन हूँ नहीं। मुझे तो लम्बी स्कर्ट्स और लम्बे बाल पसन्द हैं। यंग लेस्बियन्स को ज़रूरत महसूस होती है अलग दिखने की, कुछ अलग करने की। एक बार ख़ुद से कम्फ़र्टेबल होने पर अपने जैसा हो सकना आसान है। फिर अलग दिखना ज़रूरी नहीं लगता… और मैं तो अभी भी नहीं जानती कि मेरी सेक्सुअलिटी क्या है, लेकिन मैं इस बात से भी कम्फ़र्टेबल हूँ कि मुझे नहीं पता। अगर मेरा कातिया से ब्रेकअप होता है तो मैं लड़कों को भी डेट कर सकती हूँ। लेकिन आज मैं गे हूँ और लड़की के साथ हूँ।

कातिया—मैं भी मैस्कुलिन नहीं हूँ। न ही मैं किसी ऐसी लड़की को डेट करना पसन्द करूँगी जो मुझसे बहुत अलग हो। बहुत ज़्यादा मैस्कुलिन या बहुत ज़्यादा फ़ेमिनिन। मैं सुपर गे हूँ। मैं कभी लड़कों को डेट नहीं कर सकती। एक बार बस में खड़ी मैं सोच रही थी कि अगर लड़कों को डेट करूँ तो क्या लाइफ़ ज़्यादा आसान हो जाएगी… मैं एक-एक करके सब लड़कों को देखने लगी… अचानक मेरी नज़र एक ख़ूबसूरत लड़की पर पड़ी और तभी मुझे लगा कि लड़कियाँ कितनी शानदार होती हैं! उस वक़्त मेरे पेट में हुई हलचल ने मुझे बता दिया कि पक्का मैं गे हूँ। किसी आदमी के साथ सेटल होने का ख़याल भर मुझे कँपा देता था। मैंने शादी करने की तभी सोची जब मुझे पक्का पता चल गया कि मैं गे हूँ। उससे पहले किसी लड़के के साथ रहने के ख़याल ने मुझे कभी नहीं लुभाया।

*

यूँ तो फ़िनलैंड में समलैंगिकता को क़ानूनी दर्जा 1971 में ही मिल गया था, लेकिन आपस में शादी करने, बच्चा गोद लेने और एक-दूसरे का सरनेम ले सकने का क़ानून 1 मार्च, 2014 को पास हुआ। उस दिन पाँच हज़ार फ़िन्न लोगों ने हेलसिंकी सिटिज़न स्क्वायर पर इकट्ठे हो एक साथ, एक स्वर में कहा—थैंक यू! 

सितम्बर 2017 में कातिया और मैंडी ने शादी कर ली। कतिया की पादरी बहन तीया ने उनकी शादी करवाई। दोनों अब भी उस डेढ़ कमरे के घर में अपनी बिल्ली के साथ रहती हैं।

*

सुनना भी एक यात्रा है। जब हम किसी को सुन रहे होते हैं, उसके जीवन से गुज़रते हुए अपने जीवन को भी देख रहे होते हैं। कुछ हममें भर रहा होता है। कुछ से हम उबर रहे होते हैं।

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