क्यूँ तुम इतने करीब से महसूस होने लगे हो?
कुछ बातें ही तो होती हैं,
हमारे बीच..
कुछ एहसास जैसे लगते हो तुम,
बीती रात तो ख़्वाब ही थे तुम,
मेरी साँसों के उफान से बन गए हो,
कुछ यादों का हिस्सा भी बन गए हो तुम,
क्या कह दिया है तुमने,
जो इन कानों में बार-बार गूँजता रहता है???
क्या दिखाया है तुमने,
जो इन आँखों में ख़्वाब सा दिखता रहता है?
क्या तुम भी मुझे देखते हो ख़्वाबों में?
सोचते हो मुझे ख़यालों में?
शायद बहुत कुछ है यहाँ गहराए राज़ की तरह,
तुम्हें पता है?
तुम्हारे बालों का वो कुछ उलझा हुआ सा रहना,
चश्मे के पीछे की आँखों में कहीं,
कुछ अनकही सी बातों का वजूद,
नाक पे अटकी हुई चश्मे की लकीर,
जैसे हमारे बीच की कोई छुपी हुई दीवार,
होंठों तक आते आते तो जैसे लगता है,
बहुत कुछ कह रहे हो तुम!
देखो ना,
सुन रही हूँ मैं,
चलो अब मिलते हैं,
बहुत कुछ कहना है तुमसे…
कुछ सुनना भी है तुमसे…
बस मिलना है तुमसे…
चलो अब मिलते है..
मिलोगे ना???

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