‘Chauthi Ladki’, a poem by Mridula Singh

इंतजार का दिन पूर गया
हर कोई देख रहा है
एक-दूसरे की आँख में
तैरता कुल का सवाल
लड़का या लड़की?
तीन पहले से हैं
इस बार रखना नहीं है
सबकी मौन सहमति
पसरी है वातावरण में

वह घबरायी हुई है
बार-बार सिमर रही है देवता
हे प्रभु! लड़का ही हो
पेट पर स्नेह से हाथ फिराती
विकलता में टोहती है
शिशु की धड़कन
गहरी साँस में घुली
यह चिंता युगों की है
न जाने कितनी माँओं के
घुटते मौन में
काँपे होंगे ये शब्द
लड़की हुई तो…

तभी
हरे पर्दे से आधा झाँकते
डॉक्टर की सूचना कहती है
जुड़वा हैं
एक लड़का और एक लड़की

बिटिया का स्वीकार
मजबूरी ही सही
निर्दोष की जान तो बची
चौथी बेटियाँ इसी तरह बचती हैं
मन भर खिलखिलाती हैं माँ के मन में
नाल छोड़ थाम लेती हैं
भाई की नन्ही उंगलियाँ
जन्मदात्री की अधखुली आँखों में
भर आती हैं अथाह नदी बनकर
जुड़ा देती हैं धरती की छाती।

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मृदुला सिंह
शिक्षा- एम.ए., एम.फिल., पी.एच.डी., सेट | साहित्यिक गतिविधियों में भागेदारी, व्याख्यान, संचालन आदि | पूर्व प्रकाशन- सांस्कृतिक पत्रिका लोकबिम्ब, दैनिक युवा प्रवर्तक, इटारसी, जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ, प्रेरणा रचनाकार में लेख, कविताएँ लघुकथा का प्रकाशन | संपादक- राष्ट्रीय शोध पत्रिका रिसर्च वेब, स्मारिका | पुस्तक-संपादन- सामाजिक संचेतना के विकास में हिंदी पत्रकारिता का योगदान, मोहन राकेश के चरित्रों का मनोविज्ञान, सं. सरगुजा की सांस्कृतिक विरासत (प्रकाशाधीन), सं .ब्रम्हराक्षस (प्रकाशाधीन) | आकाशवाणी अम्बिकापुर से वार्ताएं और साक्षात्कार प्रसारित | बीस से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में शोध पत्र प्रकाशित | संप्रति- होलीक्रोस वीमेंस कॉलेज अम्बिकापुर में सहायक प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष (हिंदी) | मेल [email protected]

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