‘Chauthi Ladki’, a poem by Mridula Singh
इंतजार का दिन पूर गया
हर कोई देख रहा है
एक-दूसरे की आँख में
तैरता कुल का सवाल
लड़का या लड़की?
तीन पहले से हैं
इस बार रखना नहीं है
सबकी मौन सहमति
पसरी है वातावरण में
वह घबरायी हुई है
बार-बार सिमर रही है देवता
हे प्रभु! लड़का ही हो
पेट पर स्नेह से हाथ फिराती
विकलता में टोहती है
शिशु की धड़कन
गहरी साँस में घुली
यह चिंता युगों की है
न जाने कितनी माँओं के
घुटते मौन में
काँपे होंगे ये शब्द
लड़की हुई तो…
तभी
हरे पर्दे से आधा झाँकते
डॉक्टर की सूचना कहती है
जुड़वा हैं
एक लड़का और एक लड़की
बिटिया का स्वीकार
मजबूरी ही सही
निर्दोष की जान तो बची
चौथी बेटियाँ इसी तरह बचती हैं
मन भर खिलखिलाती हैं माँ के मन में
नाल छोड़ थाम लेती हैं
भाई की नन्ही उंगलियाँ
जन्मदात्री की अधखुली आँखों में
भर आती हैं अथाह नदी बनकर
जुड़ा देती हैं धरती की छाती।
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