छतों को सर चढ़ा कर के रखा है
दीवारों ने बिगाड़ा मामला है
करो मालूम कि क्या माजरा है
क्यों सबके सर पे ये टीका लगा है
तुम्हें मुझपे भरोसा ही नहीं है
क्या इसमें भी सनम मेरी ख़ता है
मैं तुमको सब बताना चाहता हूँ
मग़र पूछो तो मुझको क्या हुआ है
फिकर छोड़ो ज़माने की, सनम ये
ज़माना है, ज़माना बोलता है
नहीं आती मुझे अब हिचकियाँ भी
हमारे बीच इतना फासला है
बताया तुमने उसको तब वो जाना
कि कुछ तो ख़ुद को वो भी जानता है
हिज्र के बाद मरना है पता था
सनम ये रायगानी क्या बला है
तुम्हारे बाद मैं ना जी सकूंगा
तुम्हें फिर प्यार हो ये बद्दुआ है!