शाम, हर शाम हर चेहरे पर
दिन को डायरी की तरह लिखती है
जिसमें दर्ज होती हैं दिन भर की सारी
नाकामियाँ, परेशानियाँ, हैरानियाँ, नादानियाँ
और हाशिए पर
धकेली गयीं छोटी ख़ुशियों की अठन्नियाँ-चवन्नियाँ
रातें किसी मासूम लड़की के सपने की तरह उजलीं
अधूरी इच्छाओं के ऊन से
दूसरे दिन का स्वेटर बुनती हैं
कल के प्रति आश्वस्ति
महबूब रात की आँख का काजल है
सुबह होते न जाने कौन सी हवा काजल चुराती है
कि पूरा आसमान धुआँ-धुआँ
जिसमें अतृप्त आत्माओं सी उभरती शक्लें
हर शक्ल अपने आप में
एक पूरी और एक अधूरी कहानी
हर शक्ल अपनी शक्ल को ढूँढती है
पर इतना धुँधलका कि उसे अपनी शक्ल नहीं दिखती
कोई कुछ समझ पाए
कि हो आती है एक और शाम
जो फिर लिखती है अपनी सारी चुगलियाँ
हर चेहरे पर डायरी की तरह
रात अब फिर एक ख़ूबसूरत इंतज़ार है, हर चेहरे का।