‘अक्टूबर’: एक नदी जिसमें डूबकर मर जाने से भी कोई परहेज...
जब किसी अपने का हाथ छूट रहा हो तो अंतर काँप उठता है। एक टूटन महसूस होने लगती है, एक डर पैदा होता है,...
बाउजी की ‘आँखों देखी’ – एकदम। टोटल।
फ़िल्म रिव्यु: आँखों देखी
"बस यही सपना मुझे बार बार आता है
कि मैं उड़ रहा हूँ
आकाश में
पंछी की तरह
गगन को चीरता मैं चला जा रहा...