प्रकृति तेरे चरणों में शत कोटि कोटि नमन।
तुझसे ही ये मन है, तन है, तुझसे ही जीवन,
प्रकृति तेरे चरणों में शत कोटि कोटि नमन।

तू ने जुग-जुग सूर्य बनाये,
चाँद बनाये, तारे बनाये।
कई सहस्त्र नक्षत्र बनाये,
गृह, उपगृह सारे बनाये।
आकाश-गंगाएं, अरबों बनाईं,
नस्ल जीस्त की, खरबों बनाईं।

नभ, बादल, बारिश, धरती और
कास, फ़ूल, फल, वृक्ष, अग्नि,
सब तू ही है, तू ही सब है।
तू अल्लाह, ईश्वर, तू रब है।
तू नहीं तो सबका क्षय है,
तू है तो फिर किसका भय है।

तेरा होना, मेरा होना
तेरा खोना, मेरा खोना
तू चहुं दिशा में छाई हुई,
जीवन भी तू ही और कज़ा तू ही।
धरती के सारे जंगल तू,
तू बुद्ध, शनि और मंगल तू।

ये सारा ब्राह्मण है तेरा, तुझको ही अर्पण,

प्रकृति तेरे चरणों में शत कोटि कोटि नमन।
तुझसे ही ये मन है, तन है, तुझसे ही जीवन,
प्रकृति तेरे चरणों में शत कोटि कोटि नमन।

तू अनहद, अविरल, अमाप है
तू सच भी है, तू सराब है।
तू परम सत्य, तू मृगतृष्णा
तू द्रष्टा भी, तू ही घटना।
सबका मसदर, सबका उद्गम
है अंत तू ही, तू ही संगम।

तू क्षणिक भी है, स्थायी भी
तू हबाब है, तू काई भी।
सब वनस्पति, सब जीव है तू
हर नस्ल, प्रकार की नींव है तू।
तू अणु, कोशिका, परमाणु
तू धूमकेतु, तू जीवाणु।

तू कण-कण है, तू क्षण-क्षण है
तू जीवन है, तू मरण भी है।
तू अक्षर है, तू भाषा है,
तू वास्तविक मीमांसा है।
तू नभलोक, भूलोक भी है
तू तम है, तू आलोक भी है।।
तुझसे ही यह नज़्म भी है
इब्तिदा है, और ख़त्म भी है।

हम सब ऐ! कुदरत तेरे हैं ज़र्रा-ज़र्रा, कण-कण,

प्रकृति तेरे चरणों में शत कोटि कोटि नमन।
तुझसे ही ये मन है, तन है, तुझसे ही जीवन,
प्रकृति तेरे चरणों में शत कोटि कोटि नमन।

महाप्रलय जब आएगी,
भू हाहाकार मचाएगी,
नभ से ज्वाला भड़केगी जब,
जब मानवता घबराएगी।

जब सागर तांडव नाचेगा
घिस-घिस पृथ्वी को मांजेगा।
और महाविनाश की धुन पर फिर
श्री गरुड़ पुराण जी बाजेगा।

तब तेरे दर पर आ जाएंगे,
सब तेरे दर पर आ जाएंगे,
जीव, जंतु, जन-जन,

प्रकृति तेरे चरणों में शत कोटि कोटि नमन।
तुझसे ही ये तन है, मन है, तुझसे ही जीवन,
प्रकृति तेरे चरणों मे शत कोटि कोटि नमन।

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