मैं एक अर्ज़ी लगाना चाहता हूँ,
किसी सरकारी दफ़्तर में
देना चाहता हूँ एक आवेदन,
धार्मिक किताबों को अलग रखा जाए
किताबों की श्रेणी से,
वे किताबें किताबें नहीं होतीं
जिनका अपना स्वयंसिद्ध व्यवस्थित बाज़ार हो,
जिनकाे पढ़ने वाला ख़ुद को अलग-थलग पाए,
जो भक्त और ख़रीददार में भेद ना कर पाएँ
नहीं होती हैं वे किताबें।
किताबों में पाठक का ख़्याल रखा जाता है,
धार्मिक किताबें अपने पन्नों का ख़्याल रखती हैं।
उनके ऊपर रख चाट पकौड़े नहीं उड़ाये जाते,
हाथ पोंछने का तो सवाल ही नहीं,
बच्चे उनकी नाव बना के नहीं खेल सकते,
ज़मीन पर गिरने पर भी उठा के
दिमाग़ की जगह
माथे से लगा लेते हैं,
धार्मिक किताबों के फटे काग़ज़
बड़े होकर
चुनावी घोषणापत्र बनते हैं।
इन किताबों की स्याही को घोलकर
लिखी जाती है
ख़ून बहाने की रेसिपी,
या परोसे जाते हैं ऐसे सपने
जिनमें पीटे जाते हैं लाइब्रेरी में बैठे बच्चे
या जलायी जाती हैं पूरी लाइब्रेरी ही,
धार्मिक किताबों में छपी
मठ मंदिरों के महंतों की तस्वीरें
और उनकी टीका के अक्षरों के बीच
जो जगह छूटती है,
उस में ईश्वर निवास करता है,
जैसे करती है निवास
तमाम देशों के बीच छूटी छोटी जगहों में
अनवरत भयावहता,
मेरा आवेदन
उन सभी का आवेदन है
जिनका जीवन एक तराजू के डण्डे पर खड़ा है,
जिसके एक पलड़े में
तौली जाती हैं धार्मिक किताबें,
दूसरे में रख के हथियार बेचे जाते हैं,
धार्मिक किताबों को अलग रखा जाए,
किताबों की श्रेणी से।

Recommended Book:

Previous articleज़िद्दी बिन्नो
Next articleउदास शहर की बातें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here