[1]
आँख मूँद जो राज चलावै
अंधरसट्ट जो काज चलावै
कहे-सुने पर बाज न आवै
सब का चूसै—लाज न लावै
ऐसे अँधरा को धिक्कार!
राम-राम है बारम्बार!!
[2]
कानों में जो रुई लगावै
बानी से जो बान चलावै
नाक फुलावै, गाल बजावै
घर के भीतर खून बहावै
ऐसा सूरा को धिक्कार!
राम-राम है सौ-सौ बार!!
[3]
कातै सूत, मलाई खावै
पंखा खोले देह जुड़ावै
भौंहें तान हमैं कलपावै
सुरसा ऐसा मुँह फैलावै
ऐसे त्यागी को धिक्कार!
राम-राम है लाखों बार!!
[4]
बेकारी दिन-रात बढ़ावै
पेटों पर जो गाज गिरावै
खेतों पर जो टैक्स लगावै
गीधों से जो गाँव खवावै
ऐसे हितुवा को धिक्कार!
राम-राम है बारम्बार!!
[5]
हाथ जोड़ जो हाथ कटावै
पाँव पूजि जो पाँव कटावै
पेट पाल जो लाश उठावै
ड्योढ़ी मरघट एक बनावै
ऐसे बगुला को धिक्कार!
राम-राम है सौ-सौ बार!!
केदारनाथ अग्रवाल की कविता 'जो जीवन की धूल चाटकर बड़ा हुआ है'