‘Diary Ke Panne’, a poem by Mukesh Kumar Sinha

ज़रूरी है
डायरी के पन्ने का पलटा जाना
क्यूंकि कहीं न कहीं
पिछले किसी ख़ास पन्ने पर
होगा ही, उसका हस्ताक्षर!!
साथ में लिखा होगा ‘लव यू’

चमकता गुलाबी गुलाब
ख़ुशबू बिखेरता अच्छा लगता है
पर डायरी में सहेजा
वो ख़ास सूखे गुलाब की पंखुड़ी, इस्सस
उसके जैसा तो शायद कोई भी बुके नहीं
बस, कुछ भी पुरानी अहमियत
अच्छा लगता है!

पता नहीं कितनी सारी
पढ़ी प्रेम कहानियाँ
पर वो मिलना-बिछुड़ना
कुछ तो ख़ास कसक थी उसमें
बनती अगर प्रेम मूवी
सेल्युलाइड पर हिट हो ही जाती!

कॉलेज का वो स्पेसिफ़िक कोना
वो ख़ास गुलमोहर का पेड़
जिसके नीचे रखे उस ख़ास पत्थर पर
चिपककर बैठे
गुज़ारा समय कई बार
आज भी ताजमहल लगता है!

चलना, चढ़ना, उतरना
हाँफना, दौड़ना, भागना
सब होता है आज भी
पर वो ख़ास ठोकर
जो खायी थी हमने
उसको निहारने के चक्कर में,
उसको याद कर हलकी-सी विस्सल करना
मुनासिब ही लगता है!

कुछ महकते ज़र्द पन्ने
ता-ज़िन्दगी
भरते हैं एक्स इफ़ेक्ट की ख़ुशबू!!

हलकी चोर मुस्कराहट, होती है ख़ास वजह!

यह भी पढ़ें: मुकेश कुमार सिन्हा की कविता ‘प्रेम का अपवर्तनांक’

Books by Mukesh Kumar Sinha: