दिवाली पर यही व्रत धार लेंगे,
भुला नफ़रत सभी को प्यार देंगे।
इनायत है जियादा उन पे रब की,
जो होते गूँगे, लँगड़े, बहरे, भेंगे।
रहें झूठी अना में जी के हरदम,
भले ही घूँट कड़वे हम पियेंगे,
इसी उम्मीद में हैं जी रहे अब,
कभी तो आसमाँ हम भी छुयेंगे।
रे मन परवाह जग की छोड़ करना,
भले तुझको दिखाएँ लोग ठेंगे।
रहो बारिश में अच्छे दिन की तुम तर,
मगर हम पे जरा ये कब चुयेंगे।
नए ख्वाबों की झड़ लगने ही वाली,
उन्हीं पे पाँच वर्षों तक जियेंगे।
वे ही घोड़े, वही मैदान, दर्शक,
नतीज़े भी क्या फिर वे ही रहेंगे?
तु सुध ले या न ले, यादों के तेरी,
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।
सभी को दीप उत्सव की बधाई,
‘नमन’ अगली दिवाली फिर मिलेंगे।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया