वो आपसे रूठी रहेगी
और कहेगी भी नहीं

सबको पता होगा,
सबके बाद:
यानी सबसे गुज़रते हुए
आपको ख़बर लगेगी
कि आपकी जान
आपसे रूठी हुई है

आप दौड़ते हुए जाएँगे,
छटपटा के लौट आएँगे।

वो नहीं उठाएगी आपकी कॉल
कि आप मना सकें उसे―
गाकर कोई गीत,
सुनाकर कोई कविता,
या बताकर अपनी विपदा।

चाँद-तारे लाना भी
आपके वश में नहीं होगा।
रात के तक़रीबन एक बजे होंगे
और इस बेवक़्त आप,
शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक
गुलाब भी नहीं भिजवा पाएँगे।

आप व्हाट्सएप खोल
उसकी तस्वीर देखेंगे
जिसमें वो बैठी होगी
गंगातट पर। बिल्कुल शांत।

आप जल्दी से टाइप करेंगे
-सॉरी
एक शब्द जो उस वक़्त भी
रक्खेगा आपको पुर उम्मीद

आप बेबस हो
निहारते रहेंगे कुछ देर उसकी तस्वीर,
करते रहेंगे नॉटिफ़िकेशन का इंतज़ार

तब ही अचानक
बोल पड़ेगा आपका फोन,
वो देख चुकी होगी आपका मैसेज

पलभर को जैसे
ठहर जाएँगी
गिरती हुई रातरानियाँ

नई ग़ज़ल को
मिल जाएँगे दो और मिसरे,
रैन बसेरों में बन जाएगी
जगह
दो और लोगों के लिए

दो चुलबुली ब्लू टिक
रोशन कर देंगी
आपका अंतस,
आपका आसमान!

 

दिसम्बर, 2018

कुशाग्र अद्वैत
कुशाग्र अद्वैत बनारस में रहते हैं, इक्कीस बरस के हैं, कविताएँ लिखते हैं। इतिहास, मिथक और सिनेेमा में विशेष रुचि रखते हैं। अभी बनारस हिन्दू विश्विद्यालय से राजनीति विज्ञान में ऑनर्स कर रहे हैं।