क्या आकाश उतर आया है
दूबों के दरबार में?
नीली भूमि हरी हो आयी
इस किरणों के ज्वार में!

क्या देखें तरुओं को, उनके
फूल लाल अंगारे हैं,
बन के विजन भिखारी ने
वसुधा में हाथ पसारे हैं।
नक़्शा उतर गया है, बेलों
की अलमस्त जवानी का
युद्ध ठना, मोती की लड़ियों से
दूबों के पानी का!

तुम न नृत्य कर उठो मयूरी,
दूबों की हरियाली पर,
हंस तरस खाएँ उस मुक्ता
बोने वाले माली पर!
ऊँचाई यों फिसल पड़ी है
नीचाई के प्यार में!
क्या आकाश उतर आया है
दूबों के दरबार में?

माखनलाल चतुर्वेदी
माखनलाल चतुर्वेदी (४ अप्रैल १८८९-३० जनवरी १९६८) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है।