दूरियाँ किसी रिश्ते की सेहत के लिए कुछ हद तक अच्छी होती हैं मगर उस हद की सरहद क्या होती होगी?

किसी छत की सीढ़ियों से जब कोई बच्चा तेज़ी से उतरता है तो दिल दहलता है और मुँह से डाँट और हिदायतें निकलती हैं। शायद सब ऐसे ही सीखते हैं। छत से फ़र्श तक की दूरी दहलते-दहलाते पूरी कर ही ली जाती है, कभी चोट खाकर, कभी यूँ ही। सबको ख़बर होती है कि लौटकर फ़र्श पर आना ही है।

कभी-कभी दूरियाँ बहुत ज़्यादा फासले ले आती है जो वक़्त के साथ ऐसी गहरी खाई बन जाती है जिसको पाट दिया जाना नामुमकिन लगता है। जब किसी की आदत छूटने लगती है तो इंसान थोड़ा बदलने लगता है। उसके पाँवों में अक्सर दिल जगह बना लेता है और वो चल पड़ता है ऐसी डगर पर जो कहीं जाती नहीं है।

जमाना जिसे ग़ुमराही कहता है, पाँवों को रौंदता हुआ दिल उसे सुकून कहता है।

रूह के जिन हिस्सों में दर्द बो दिये जाते हैं, वो ग़ज़ल, गीत और कविताओं की फ़सल ईज़ाद करते हैं। जिस्म के जो हिस्से बंजर होते हैं वो आँसुओं से सिंचाई कर कुछ बोने की फिराक में उम्र काट देते हैं। पूरी उम्र सपनों की बदगुमान हवा के फ़रेब में आके बेतरतीब और बेसलीका टूटे हुए पत्तों की तरह फिर से वहाँ लौट ही नहीं पाती जहाँ सपनों के बाद का गन्तव्य तय किया गया था।

दिसम्बर और जनवरी के महीनों में जिस तरह खेजड़ी और नीम के पत्ते जबरन झाड़ दिए जाते हैं, वो पेड़ भी बेमुरव्वत होकर छाया देने की अपनी अच्छी आदत को भूला नहीं करते। जाने इंसान इतना पत्थर दिल क्यों हो जाता है कि कुछ चोटों की चुभन और सूजन के बाद ख़ुद की आँखों को ही ख़ूबसूरत नजारे दिखाने से इनकार कर देता है। दूरियों को दूरियों की तरह ही देखने का अपना फ़ायदा है कि मुलाकात की एक उम्मीद बनी रहती है।
दुनिया अपने हिसाब से चलती है जैसे वक़्त मगर हम दरमियाँ अचानक आ गये फासलों को मुहब्बत का एक खूबसूरत मोड़ मानकर जीने की जरा सी कोशिश कर लें तो शायद किसी सहरा में मुमकिन है कोई कैक्टस बग़ैर काँटों के भी जीना सीख ले।

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राहुल बोयल
जन्म दिनांक- 23.06.1985; जन्म स्थान- जयपहाड़ी, जिला-झुन्झुनूं( राजस्थान) सम्प्रति- राजस्व विभाग में कार्यरत पुस्तक- समय की नदी पर पुल नहीं होता (कविता - संग्रह) नष्ट नहीं होगा प्रेम ( कविता - संग्रह) मैं चाबियों से नहीं खुलता (काव्य संग्रह) ज़र्रे-ज़र्रे की ख़्वाहिश (ग़ज़ल संग्रह) मोबाइल नम्बर- 7726060287, 7062601038 ई मेल पता- [email protected]

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