दुःख का एक महल
एक आलिशान महल
जिसमें मैं कभी भिश्ती हूँ
तो कभी दरवान
मैंने आज तक महल के राजा को नहीं देखा
केवल उसके आगे पानी भरा है

उसने मुझे लकड़ी का एक चाँद भिजवाया था
जिसमें साँस लेने भर की क़ाबिलीयत नहीं थी
चाँद सफ़ेद था
उसे धब्बेदार मैंने किया

उसने मुझे रेशम के फूल भिजवाये
जिसमें ख़ुशबू का कोई इमकान नहीं था
मैं उसे किसी मंदिर या दरगाह में न चढ़ा सका

उसने जो धूप भिजवाई
उसमें हरारत नहीं थी

उसने जो रंग दिए
पानी में नहीं घुले

उसने कुछ सपने भी भिजवाये थे
मगर
महल के काम के बोझ ने कभी सोने नहीं दिया

मेरे साथी सोया करते थे
उसने उन्हें ख्व़ाब नहीं भिजवाये

मुझ तक ये सब लाने वाला अंधा था
और बहरा भी
उसे बस यही एक रास्ता पता था
मैं उसे नहीं कह सका कि ‘मैं राजा से मिलना चाहता हूँ’

मैंने जिससे भी पूछा
सभी ने कहा कि वह भी राजा से मिलना चाहता है..

मैंने गुनाह की सोची
कि
तब तो राजा सज़ा मुक़र्रर करने सामने आएगा

मैंने उसके बाग़ से उसका सबसे पसंदीदा फूल तोड़ा
मुझे गिरफ्तार कर लिया गया
और पैरों में बेड़ियाँ डाल दी गयीं

मेरी अकेले की पेशी हुई
राजा ने मेरी तरफ़ पीठ करके सज़ा सुनाई

अब मैं सज़ा काट रहा
या ज़िन्दगी
पता नहीं
पर मैंने अब तक राजा का चेहरा नहीं नहीं देखा!

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