सब्ज़ मद्धम रौशनी में सुर्ख़ आँचल की धनक
सर्द कमरे में मचलती गर्म साँसों की महक
बाज़ुओं के सख़्त हल्क़े में कोई नाज़ुक बदन
सिलवटें मल्बूस पर आँचल भी कुछ ढलका हुआ
गर्मी-ए-रुख़्सार से दहकी हुई ठण्डी हवा
नर्म ज़ुल्फ़ों से मुलाएम उँगलियों की छेड़-छाड़
सुर्ख़ होंठों पर शरारत के किसी लम्हे का अक्स
रेशमीं बाँहों में चूड़ी की कभी मद्धम खनक
शर्मगीं लहजों में धीरे से कभी चाहत की बात
दो दिलों की धड़कनों में गूँजती थी इक सदा
काँपते होंठों पे थी अल्लाह से सिर्फ़ इक दुआ
काश ये लम्हे ठहर जाएँ, ठहर जाएँ ज़रा!

परवीन शाकिर
सैयदा परवीन शाकिर (नवंबर 1952 – 26 दिसंबर 1994), एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं। इनकी प्रमुख कृतियाँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) आदि हैं। वे उर्दू शायरी में एक युग का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी शायरी का केन्द्रबिंदु स्त्री रहा है।