‘Ek Din Ashruon Ke Sailab Se Bach Jayegi Duniya’, a poem by Vineeta Parmar

रोना एक कला है और आँसू विज्ञान
उसे कहते लड़कियों जैसा रोना मत।
तुम और मर्द बनो
फिर कहते तुम मर्दानी बनो
मर्द के क़रीब सब पहुँचो
मर्द को दर्द नहीं होता
उनका मर्ज ही इलाज है।

ताउम्र उसे सीखाती रही
आँसुओं को रोकने की कला
अश्रुग्रंथियों को बंजर बनाने की करती रही हर एक कोशिश।

वहीं सारी आँखों के सामने प्रस्तुत
सुंदर दृश्यों में
पारा एक ‘धातु’ सी
तरलता बनी रही
हृदय तल पर उग रहे अंखुए
को हरदम मिलती रही खारी नमी
तुम्हारी लाख कोशिशों में एक ‘एक्स’ को ‘वाई’ से विस्थापन इतना भी सरल नहीं।
वर्षों से नदियों की धार बदलने की
लाख होती हैं कोशिशें
नदी बहते रहती है
तुम्हारे पास भी बस बहने
की ही गुंजाइश है।

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